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Friday, March 21, 2025
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रुपये की हालत पर RBI गवर्नर Sanjay Malhotra ने कही ये बातें, विनिमय दर नीति बनी हुई है स्थिर

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के गवर्नर Sanjay Malhotra ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय रुपये की विनिमय दर नीति पिछले कई वर्षों से स्थिर बनी हुई है और केंद्रीय बैंक ने रुपये के लिए “विशिष्ट स्तर या सीमा” निर्धारित करने का कोई लक्ष्य नहीं रखा है। रुपये की विनिमय दर हाल ही में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 87.59 रुपये के ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर तक गिर गई है। गुरुवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 87.59 पर बंद हुआ, जो कि 16 पैसे की गिरावट थी।

माल्होत्रा ने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के परिणामों की घोषणा करते हुए कहा, “मैं यहां यह कहना चाहता हूं कि रिजर्व बैंक की विनिमय दर नीति पिछले कई वर्षों से स्थिर बनी हुई है। हमारा उद्देश्य बाजार की क्षमता से समझौता किए बिना व्यवस्था और स्थिरता बनाए रखना है।”

रुपया इस साल 2 प्रतिशत गिर चुका है

Sanjay Malhotra ने आगे कहा, “हमारा विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप इस उद्देश्य के लिए है कि हम अत्यधिक और गंभीर उतार-चढ़ाव को कम करें, न कि किसी विशिष्ट विनिमय दर स्तर या सीमा को लक्षित करने के लिए। भारतीय रुपये की विनिमय दर बाजार के कारकों द्वारा निर्धारित होती है।”

उन्होंने बताया कि इस साल अब तक रुपये में लगभग 2 प्रतिशत की गिरावट आई है। 6 नवंबर, 2024 को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों के बाद, रुपये में 3.2 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि इस दौरान डॉलर सूचकांक (Dollar Index) में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट

RBI गवर्नर Sanjay Malhotra ने कहा कि पिछले तीन महीनों में विदेशी मुद्रा भंडार में 45 बिलियन अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई है, जिसका एक प्रमुख कारण विदेशी मुद्रा बाजार में रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप है। 8 नवंबर, 2024 तक, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 675.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। वहीं, 31 जनवरी 2025 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 630.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ गया था, जो पिछले सप्ताह 629.55 बिलियन डॉलर था। यह राशि भारत के 10 महीने के आयातों के लिए पर्याप्त है।

रुपये की हालत पर RBI गवर्नर Sanjay Malhotra ने कही ये बातें, विनिमय दर नीति बनी हुई है स्थिर

उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बड़े पैमाने पर पूंजी निकासी

Sanjay Malhotra ने यह भी कहा कि अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ है और अमेरिकी बांड यील्ड में वृद्धि हुई है, क्योंकि अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती की गति और आकार के बारे में उम्मीदें घट रही हैं। इसके परिणामस्वरूप, उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से पूंजी का बड़े पैमाने पर निकासी हो रही है, जिससे इन देशों की मुद्राओं में तेज गिरावट आई है और वित्तीय स्थिति और अधिक सख्त हुई है।

 

अमेरिकी डॉलर का प्रभाव

गवर्नर मल्होत्रा ने बताया कि अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने और अमेरिकी बांड यील्ड में वृद्धि के कारण वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों में काफी बदलाव आया है। अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती की गति और आकार को लेकर जो उम्मीदें थीं, वे अब कमजोर हो गई हैं। इस स्थिति के कारण उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में पूंजी निकासी का दौर चल पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मुद्राओं में तेज गिरावट आई है।

विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार वर्तमान में पर्याप्त स्तर पर है और इसका उपयोग देश की बाहरी आर्थिक स्थिति को स्थिर बनाए रखने में किया जा सकता है। 2024 के अंत तक, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 675.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो कि 10 महीने के आयातों के लिए पर्याप्त है। विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के बावजूद, भारतीय रुपये की विनिमय दर को नियंत्रित करने के लिए आरबीआई द्वारा किए गए उपायों के बावजूद यह स्थिति नियंत्रण में है।

आरबीआई की नीति में कोई बदलाव नहीं

आरबीआई के गवर्नर ने स्पष्ट रूप से कहा कि केंद्रीय बैंक की नीति में कोई बदलाव नहीं किया गया है और भारतीय रुपये की विनिमय दर के संबंध में आरबीआई का उद्देश्य केवल बाजार की स्थिरता बनाए रखना है। भारतीय रुपये की विनिमय दर बाजार के कारकों द्वारा निर्धारित होती है, और आरबीआई का हस्तक्षेप इस दिशा में होता है कि अत्यधिक उतार-चढ़ाव को कम किया जा सके।

केंद्रीय बैंक की भूमिका

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का मुख्य उद्देश्य वित्तीय प्रणाली को स्थिर रखना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। इसके लिए आरबीआई बाजार में हस्तक्षेप करता है, लेकिन इसका उद्देश्य किसी विशिष्ट विनिमय दर को तय करना नहीं होता है। आरबीआई का ध्यान केवल विदेशी मुद्रा बाजार में संतुलन बनाए रखने और बाजार की क्षमता को प्रोत्साहित करने पर होता है।

रुपये की विनिमय दर में आई गिरावट और विदेशी मुद्रा भंडार में आई कमी के बावजूद, आरबीआई का मानना है कि भारतीय रुपये की विनिमय दर बाजार के तत्वों से प्रभावित होती है और इसे नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है ताकि वित्तीय बाजार स्थिर रहें। आरबीआई ने स्पष्ट किया कि उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं किया गया है और यह कोई विशिष्ट स्तर या सीमा नहीं तय करता। भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक घटनाओं से प्रभावित होते हुए भी यह स्थिति नियंत्रण में है और उम्मीद की जाती है कि भविष्य में इसका समाधान होगा।

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