राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक Dr. Mohan Bhagwat ने झंडेवालान स्थित ‘केशव कुंज’ के नव पुनर्निर्मित भवन के प्रवेशोत्सव कार्यक्रम में कहा कि “संघ का कार्य देश में तेजी से आगे बढ़ रहा है, इसका विस्तार हो रहा है।” इस अवसर पर उन्होंने स्वयंसेवकों को संदेश देते हुए कहा कि इस भव्य भवन की तरह हमें संघ कार्य को भी भव्य बनाना होगा, और यह हमारे कार्यों में झलकना चाहिए।
उन्होंने विश्वास जताया कि संघ का कार्य पूरे विश्व तक पहुंचेगा और भारत को विश्वगुरु के पद पर स्थापित करेगा। उन्होंने कहा, “हमें पूरा विश्वास है कि यह कार्य हम अपनी इन्हीं आँखों से पूर्ण होता देखेंगे, लेकिन इसके लिए स्वयंसेवकों को निरंतर प्रयास करना होगा। संघ कार्य को हमें लगातार बढ़ाना होगा।”
संघ कार्य के विस्तार की आवश्यकता
Mohan Bhagwat ने कहा कि आज संघ का कार्य विभिन्न आयामों से आगे बढ़ रहा है। इसीलिए, संघ के स्वयंसेवकों के व्यवहार में सशक्तता और पवित्रता बनी रहनी चाहिए। समय के साथ संघ की परिस्थितियाँ बदली हैं, लेकिन इसकी दिशा नहीं बदलनी चाहिए।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि समृद्धि आवश्यक है, लेकिन इसे सीमाओं में रखते हुए अपनाना होगा। केशव स्मारक समिति का यह नव-निर्मित भवन भव्य है, इसलिए हमें इसके अनुरूप अपने कार्यों को भी श्रेष्ठ बनाना होगा।
संघ के पहले कार्यालय ‘महल’ का उल्लेख
इस अवसर पर Dr. Mohan Bhagwat ने संघ के पहले सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार जी द्वारा संघ कार्य के प्रारंभिक समय में आई कठिनाइयों का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि नागपुर में संघ का पहला कार्यालय ‘महल’ किस प्रकार स्थापित हुआ था।
उन्होंने कहा कि दिल्ली देश की राजधानी है, और यहीं से कई महत्वपूर्ण कार्य संचालित होते हैं। इसलिए, यहाँ एक कार्यालय की आवश्यकता महसूस हुई और इसी सोच के आधार पर यह कार्यालय बनाया गया।
लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि केवल इस भव्य भवन का निर्माण संघ कार्य का पूर्ण होना नहीं है। “हमें यह याद रखना होगा कि विरोध और उपेक्षा हमें सतर्क रखते हैं। लेकिन अब जब अनुकूल वातावरण है, तब हमें और भी अधिक सावधान रहने की जरूरत है।”
उन्होंने आगे कहा कि यह कार्यालय हमें कार्य करने की प्रेरणा देता है, लेकिन हर स्वयंसेवक का कर्तव्य है कि वह अपने परिवेश और कार्यों की चिंता करे।
संघ प्रार्थना से बड़ा कोई मंत्र नहीं
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के कोषाध्यक्ष गोविंद देव गिरी महाराज ने इस अवसर पर अपने आशीर्वचन में कहा कि “आज श्रीगुरुजी की जयंती है, इसलिए यह दिन पावन है।”
उन्होंने यह भी कहा कि यह छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती भी है, जो संघ की विचारधारा के शक्ति स्रोत हैं।
उन्होंने कांची कामकोटी पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य परमाचार्य का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक से कहा था – “संघ प्रार्थना से बड़ा कोई मंत्र नहीं है।”
गोविंद देव गिरी जी ने फिल्म ‘छावा’ का उदाहरण देते हुए कहा कि “छत्रपति शिवाजी महाराज ने ऐसे मावले तैयार किए थे जो न कभी थकते थे, न रुकते थे, न झुकते थे और न ही बिकते थे।”
उन्होंने स्वयंसेवकों की तुलना छत्रपति शिवाजी महाराज के तपस्वी मावलों से की और कहा कि “हम हिन्दू भूमि के पुत्र हैं, और संघ राष्ट्र की परंपरा को सशक्त बनाते हुए देश की प्रगति की बात करता है।”
संघ के 100 वर्ष पूरे होने का संकल्प
उदासीन आश्रम दिल्ली के प्रमुख संत राघवानंद महाराज ने कहा कि यदि संघ अपने 100 वर्ष पूरे कर रहा है, तो इसके पीछे डॉ. हेडगेवार जी की मजबूत संकल्प शक्ति है।
उन्होंने कहा, “संघ ने समाज के प्रति समर्पण के साथ कार्य किया है और समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए कार्य किया है।” इसीलिए संघ का कार्य निरंतर बढ़ता जा रहा है।
संघ कार्य का भविष्य और स्वयंसेवकों की जिम्मेदारी
डॉ. मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों से अपील की कि वे संघ के विस्तार के लिए अपनी पूरी निष्ठा और लगन के साथ कार्य करें। उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य सिर्फ संगठन खड़ा करना नहीं, बल्कि समाज को एक नई दिशा देना है। “हमें स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ उनके चरित्र, विचारधारा और कर्मठता को भी बढ़ाना होगा।”
उन्होंने स्वयंसेवकों को यह भी याद दिलाया कि “हमारी सबसे बड़ी शक्ति हमारी एकता और अनुशासन है। हमें इसे बनाए रखना है और संघ के उद्देश्यों को जन-जन तक पहुँचाना है।”
इस कार्यक्रम में संघ की विचारधारा और उसके लक्ष्य को लेकर महत्वपूर्ण बातें कही गईं। मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों से संघ के विस्तार और भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए समर्पित रहने का आह्वान किया। संघ कार्य केवल भवनों और संस्थानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के हर वर्ग को जोड़ने और उसे नई दिशा देने का अभियान है।
इस अवसर पर संघ की ऐतिहासिक यात्रा, उसके संघर्ष, उसके सिद्धांत और उसके भविष्य की योजना पर भी प्रकाश डाला गया।
संघ के वरिष्ठ नेताओं ने स्वयंसेवकों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे देश, समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य करें और भारत को विश्वगुरु बनाने के संकल्प के साथ आगे बढ़ें।