‘Mrs.’ Movie Review: सान्या मल्होत्रा की फिल्म ‘मिसेज’ एक मजबूत महिला कहानी है जो भारतीय समाज में व्याप्त पैट्रिआर्की पर जोरदार हमला करती है। यह फिल्म मलयालम की मशहूर फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ का हिंदी रीमेक है, जिसे आरती कडव ने डायरेक्ट किया है। इस फिल्म ने कई फिल्म फेस्टिवल्स में अपनी छाप छोड़ी है और अब यह ZEE5 पर रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म का रिव्यू जानने के बाद ही आप इसे देख सकते हैं।
समाज में महिलाओं की स्थिति पर फिल्म ‘मिसेज’ का प्रभाव
आजकल महिलाओं के जीवन पर आधारित फिल्में केवल यह नहीं दिखातीं कि महिलाएं आधुनिक, प्रतिभाशाली हैं और अपनी शर्तों पर जी रही हैं, बल्कि इन फिल्मों में इससे कहीं अधिक गहराई होती है। कुछ फिल्मों में महिलाओं को शराब पीते और सिगरेट फूंकते दिखाया जाता है या फिर फेमिनिज्म का गलत फायदा उठाया जाता है। ‘मिसेज’ उन फिल्मों में से एक है, जो न केवल नकली फेमिनिज़्म की हर परिभाषा को तोड़ती है, बल्कि यह बताती है कि ‘चुनने का अधिकार’ क्या होता है। इस फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि जब किसी को अपनी जीवनशैली को सरल तरीके से जीने का मौका नहीं मिलता, तो उसे अपने बुनियादी अधिकारों के प्रति जागरूक कैसे किया जा सकता है।
कहानी:
‘मिसेज’ की कहानी को केवल दो वाक्यों में समझा जा सकता है। रिचा (सान्या मल्होत्रा) नाम की एक नवविवाहिता महिला अपने पति दिवाकर (निशांत दहिया) के घर में एडजस्ट करने की कोशिश करते-करते थक जाती है और अंत में उसे छोड़ने का निर्णय लेती है। रिचा अपने सपने को पूरा करने के लिए एक स्कूल डांस टीचर बन जाती है, जबकि उसका पति दूसरी महिला से शादी कर लेता है। फिल्म में रिचा की कहानी को दोनों परिस्थितियों के बीच में दिखाया गया है। इस 1 घंटे 40 मिनट की फिल्म का अधिकांश हिस्सा एक घर में UP में शूट किया गया है, जिसमें अधिकांश दृश्य किचन के हैं।
किचन में बयां होती है महिला की पीड़ा
फिल्म के हर एक शॉट में एक खास कहानी छिपी हुई है। पहले 15-20 मिनट में ही दर्शकों को यह समझ में आ जाता है कि कैसे एक मिडिल क्लास पत्नी को शादी के बाद घर और किचन की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। सास न केवल उसे नौकरी छोड़ने के लिए कहती है, बल्कि पूरे घर के नियमों का पालन करने को भी कहती है। इसके अलावा, पिता और पति भी उसकी मदद करने के बजाय उसकी जिंदगी को और भी मुश्किल बना देते हैं। फिल्म में घरेलू हिंसा, वैवाहिक मामलों या मानसिक शोषण का कोई गलत संदेश नहीं दिया गया है, बल्कि यह मानसिक तनाव, सपनों की हत्या और एक प्यार भरे रिश्ते की बदहाली को दिखाती है।
लेखन और निर्देशन:
‘मिसेज’ की कहानी इस फिल्म की खासियत है। फिल्म का इमोशनल ड्रामा और बेहतरीन लेखन इसे एक शानदार रीमेक बनाते हैं। फिल्म के संवादों का बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ अच्छा तालमेल है, जो सान्या मल्होत्रा के अभिनय को और भी प्रभावशाली बनाता है। फिल्म के सेट डिज़ाइन और डेकोरेशन ने पूरी फिल्म की टोन को बढ़िया तरीके से सेट किया है और यह कहानी को एक ऑर्गेनिक तरीके से क्लाइमेक्स तक ले जाती है। निर्देशक ने भारतीय परिवारों में महिलाओं की समस्याओं को बहुत अच्छे से दिखाया है, खासकर जब महिलाएं घर की सारी जिम्मेदारी संभालने के बावजूद अपनी इच्छाओं और करियर को नजरअंदाज करती हैं।
कास्ट का अभिनय:
इस फिल्म में सान्या मल्होत्रा के किरदार का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, जिनके साथ उनके ऑन-स्क्रीन पति निशांत दहिया और ससुर कनवालजीत सिंह भी फिल्म को बेहतरीन तरीके से आगे बढ़ाते हैं। तीनों का अभिनय सराहनीय है, लेकिन सान्या का काम सच में काबिले तारीफ है। बिना शोर मचाए और बिना आंसू बहाए, सान्या ने उस महिला का किरदार निभाया है जो शादी के बाद नाखुश होती है। फिल्म में सान्या का अभिनय कई घरेलू घटनाओं से जुड़ा हुआ है, जिनसे हर कोई आसानी से जुड़ सकता है।
फिल्म में ये दो दृश्य खास हैं:
- जब रिचा सिंक को साफ करते वक्त मांस का टुकड़ा हाथ में फंस जाता है और वह परेशान हो जाती है।
- जब रिचा करवा चौथ की रात अपने अंदर चल रही भावनाओं को काबू करती है और चाहती है कि सवी यह पुष्टि करे कि वह भी परिवार का हिस्सा है।
कैसी है फिल्म?
यह फिल्म एक बेहतरीन कहानी है, जो फेमिनिज़्म के बारे में बिना किसी स्टीरियोटाइप के शानदार तरीके से संदेश देती है। सान्या मल्होत्रा और आरती कडव की इस फिल्म ने पैट्रिआर्की समाज और इसके प्रवर्तकों पर एक जोरदार थप्पड़ मारा है। यह समय है कि ऐसी बेहतरीन कहानियों को सिर्फ देखा ही नहीं, बल्कि चर्चा भी किया जाए। इस फिल्म ने मेलबर्न फिल्म फेस्टिवल में खड़े होकर ताली बटोरी थी और IFFI गोवा और MAMI में इसका प्रीमियर हुआ था। इंडिया टीवी ने ‘मिसेज’ को चार स्टार दिए हैं। फिल्म शुक्रवार को ZEE5 पर रिलीज होने वाली है, जिसे हर महिला को जरूर देखना चाहिए।
‘मिसेज’ एक दिलचस्प और प्रेरणादायक फिल्म है जो समाज की सोच को चुनौती देती है और महिलाओं की पीड़ा को बखूबी दर्शाती है। यह फिल्म दर्शकों को न केवल मनोरंजन प्रदान करती है, बल्कि भारतीय परिवारों में महिलाओं के कर्तव्यों और अधिकारों पर भी विचार करने का मौका देती है।