Built-up Area Vs Super Built-up: आज के समय में दिल्ली-एनसीआर से लेकर छोटे शहरों तक फ्लैट की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी हैं। नोएडा गुरुग्राम और मुंबई जैसे बड़े शहरों में 2बीएचके फ्लैट की कीमत करोड़ों में जा रही है। ऐसे में आम आदमी के लिए अपने सपनों का घर खरीदना एक बड़ी चुनौती बन चुका है। इस चुनौती को थोड़ा आसान बनाने के लिए ज़रूरी है कि फ्लैट खरीदते समय उसकी तकनीकी बातों को समझा जाए।
बिल्ट-अप एरिया क्या होता है?
बिल्ट-अप एरिया उस फ्लैट की वह जगह होती है जो चार दीवारों के अंदर आती है। इसमें दीवारों की मोटाई बालकनी और यूटिलिटी एरिया भी शामिल होते हैं। आमतौर पर बिल्ट-अप एरिया फ्लैट के कारपेट एरिया से 10% से 20% ज्यादा होता है। उदाहरण के लिए अगर किसी फ्लैट का कारपेट एरिया 1000 स्क्वायर फीट है तो बिल्ट-अप एरिया लगभग 1100 से 1200 स्क्वायर फीट हो सकता है।
सुपर बिल्ट-अप एरिया क्या होता है?
सुपर बिल्ट-अप एरिया में फ्लैट का बिल्ट-अप एरिया और साथ ही प्रोजेक्ट की सभी सामान्य सुविधाएं जैसे सीढ़ियां लिफ्ट लॉबी क्लब हाउस आदि शामिल होते हैं। इसका आकार कारपेट एरिया से 25% से 40% ज्यादा होता है। अगर कारपेट एरिया 1000 स्क्वायर फीट है तो सुपर बिल्ट-अप एरिया 1250 से 1400 स्क्वायर फीट तक हो सकता है।
सही प्रोजेक्ट कैसे चुनें?
फ्लैट बुक करने से पहले बिल्डर से कारपेट बिल्ट-अप और सुपर बिल्ट-अप एरिया का ब्रेकअप जरूर मांगें। सिर्फ सुपर बिल्ट-अप एरिया देखकर तुलना न करें। जिस प्रोजेक्ट में लोडिंग कम होती है और बिल्ट-अप एरिया के मुकाबले कारपेट एरिया 20% से 25% ज्यादा होता है वहां आपको बजट में बड़ा फ्लैट मिलेगा। वहीं जहां लोडिंग 35% से 45% होती है वहां फ्लैट छोटा मिलेगा क्योंकि बिल्डर ने पार्क जिम जैसी आम सुविधाएं बढ़ाकर फ्लैट की जगह कम कर दी होती है।
थोड़ी समझदारी से मिलेगी बड़ी जगह
अगर आप सुपर बिल्ट-अप और बिल्ट-अप एरिया की सच्चाई को पहले से समझते हैं तो आप सही प्रॉपर्टी का चुनाव कर सकते हैं। इससे आपको कम बजट में भी बड़ा और उपयोगी फ्लैट मिल सकता है। ध्यान रखें कि जितना बड़ा सुपर बिल्ट-अप होगा उतना ही कम कारपेट एरिया मिलेगा। इसलिए सिर्फ दिखावे में न आएं और सही गणना करें।