Manipur: सुप्रीम कोर्ट के जजों की पांच सदस्यीय टीम शनिवार को मणिपुर के दौरे पर पहुंची। इस टीम का नेतृत्व न्यायमूर्ति बीआर गवई (Justice BR Gavai) कर रहे हैं, जो राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। टीम में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, एमएम सुंदरश, केवी विश्वनाथन और एन कोटिस्वर शामिल हैं। यह टीम राज्य में हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करेगी और राहत शिविरों (Relief Camps) का जायजा लेगी।
मणिपुर पहुंचने पर जस्टिस गवई ने कहा, “हम यहां आकर बेहद खुश हैं और इस दौरे को लेकर उत्साहित हैं।” इस दौरान न्यायमूर्ति गवई मणिपुर के सभी जिलों में कानूनी सेवा शिविरों (Legal Service Camps) और मेडिकल कैंपों का वर्चुअल उद्घाटन करेंगे। इसके अलावा, इंफाल ईस्ट, इंफाल वेस्ट और उखरुल जिलों में नई कानूनी सहायता क्लीनिक (Legal Aid Clinics) की शुरुआत भी की जाएगी।
राहत शिविरों में जाएंगे जज, कानून सेवा शिविरों का उद्घाटन
सुप्रीम कोर्ट की टीम का मुख्य उद्देश्य हिंसा प्रभावित लोगों की स्थिति को समझना और उनके लिए कानूनी सहायता सुनिश्चित करना है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि शिविरों में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (Internally Displaced Persons – IDPs) को आवश्यक राहत सामग्री वितरित की जाएगी।
कानूनी सेवा शिविरों में लोगों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाएगा। शिविरों में लोगों को स्वास्थ्य सेवा, पेंशन, रोजगार योजनाओं और पहचान पत्र जैसे लाभ प्राप्त करने में सहायता की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट जजों के दौरे का राजनीतिक विवाद
सुप्रीम कोर्ट जजों के मणिपुर दौरे को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी सामने आई है। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने इस दौरे का स्वागत किया, लेकिन साथ ही राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) लागू करने में देरी पर सवाल उठाए।
जयराम रमेश ने एएनआई से बातचीत में कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट के छह जजों के मणिपुर दौरे का स्वागत करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मणिपुर में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है, तब भी सरकार को राष्ट्रपति शासन लागू करने में 18-19 महीने क्यों लग गए?”
उन्होंने सवाल उठाया कि मणिपुर में छह महीने तक पूर्णकालिक राज्यपाल (Governor) क्यों नहीं थे। रमेश ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने एक आदिवासी महिला गवर्नर को हटा दिया और असम के राज्यपाल को अतिरिक्त प्रभार दे दिया। फिर एक सेवानिवृत्त नौकरशाह को पूर्णकालिक राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया।
मणिपुर में हिंसा की पृष्ठभूमि
मणिपुर में हिंसा की शुरुआत 3 मई 2023 को हुई थी। ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) द्वारा आयोजित रैली के बाद हिंसा भड़क उठी थी। इस दौरान हिंदू मैतेई समुदाय और ईसाई कुकी जनजाति के बीच संघर्ष शुरू हो गया था।
इस हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों विस्थापित हुए। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने मणिपुर में अर्धसैनिक बलों को तैनात किया था। राज्य में कई महीनों तक कर्फ्यू और इंटरनेट प्रतिबंध लगाए गए थे।
कानूनी सहायता और राहत शिविरों का उद्देश्य
सुप्रीम कोर्ट की टीम का दौरा मणिपुर में न्याय व्यवस्था को मजबूत करने और पीड़ितों को त्वरित न्याय प्रदान करने का प्रयास है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि कानूनी सेवा शिविरों में पीड़ितों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा।
कानूनी सेवा शिविरों में मिलेंगे ये लाभ:
- स्वास्थ्य सुविधाएं: शिविरों में मेडिकल जांच और उपचार की सुविधा होगी।
- पेंशन और सरकारी योजनाएं: लोगों को वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा।
- पहचान पत्र: शिविरों में पहचान पत्र बनवाने में सहायता की जाएगी ताकि लोग सरकारी सेवाओं का लाभ उठा सकें।
- रोजगार योजनाएं: बेरोजगारों को सरकारी और निजी क्षेत्र की योजनाओं से जोड़ा जाएगा।
कानूनी सहायता का महत्व
मणिपुर में पिछले एक साल से हिंसा प्रभावित लोगों की स्थिति बेहद खराब है। कई परिवार बेघर हो गए हैं और राहत शिविरों में रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की टीम का दौरा पीड़ितों को न्याय दिलाने और उन्हें राहत पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं
सुप्रीम कोर्ट के दौरे को लेकर राजनीतिक दलों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
- कांग्रेस: जयराम रमेश ने राष्ट्रपति शासन लागू करने में देरी को लेकर सरकार पर सवाल उठाए।
- भाजपा: भाजपा नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट की पहल का स्वागत किया और इसे न्यायिक सक्रियता का सही उदाहरण बताया।
- स्थानीय संगठनों: स्थानीय आदिवासी और मैतेई संगठनों ने भी सुप्रीम कोर्ट के जजों की पहल की सराहना की और कहा कि इससे पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद है।
सुप्रीम कोर्ट के जजों का मणिपुर दौरा राज्य में हिंसा पीड़ितों के लिए राहत और न्याय की उम्मीद लेकर आया है। इस दौरान कानूनी सेवा शिविरों में लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की यह पहल हिंसा प्रभावितों के लिए न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।