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Saturday, November 15, 2025
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ट्रम्प का H-1B visa $100,000 शुल्क! अमेरिकी आईटी सेक्टर और स्टार्टअप्स पर भारी पड़ने की आशंका

अमेरिका में H-1B visa पर $100,000 फीस लगाने के डोनाल्ड ट्रंप के फैसले ने वैश्विक और अमेरिकी समुदाय में हड़कंप मचा दिया है। अमेरिकी सांसदों और समुदाय के नेताओं ने इस फैसले को “अकुशल” और “दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया है। IT उद्योग के लिए इसके नकारात्मक प्रभाव की आशंका जताई जा रही है। कांग्रेस सदस्य राजा कृष्णमूर्ति ने कहा कि यह फैसला अमेरिकी अर्थव्यवस्था और नवाचार को कमजोर करने की साजिश है।

वैश्विक प्रतिभा को अमेरिका से दूर करने का प्रयास

राजा कृष्णमूर्ति ने बताया कि H-1B वीज़ा धारक समय के साथ अमेरिकी नागरिक बन जाते हैं और व्यवसाय स्थापित करते हैं, जो हजारों लोगों को रोजगार देते हैं। उन्होंने कहा, “जब अन्य देश वैश्विक प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, अमेरिका को अपनी कार्यशक्ति को मजबूत करना चाहिए और अपने इमिग्रेशन सिस्टम को उन्नत करना चाहिए। ऐसे बाधाएं नहीं बनानी चाहिए जो हमारी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को कमजोर करें।”

 ट्रम्प का H-1B visa $100,000 शुल्क! अमेरिकी आईटी सेक्टर और स्टार्टअप्स पर भारी पड़ने की आशंका

अमेरिकी IT क्षेत्र को खतरा

पूर्व सलाहकार अजय भुतोरिया ने चेतावनी दी कि $100,000 फीस का निर्णय अमेरिकी IT क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को खतरे में डाल सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में H-1B वीज़ा $2,000 से $5,000 तक खर्च करता है और यह अमेरिका में शीर्ष प्रतिभाओं को आकर्षित करता है। इस भारी वृद्धि से छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप प्रभावित होंगे, जो प्रतिभाशाली कर्मचारियों पर निर्भर हैं।

प्रतिभाशाली पेशेवरों का पलायन

भुतोरिया ने आगे कहा कि इस फैसले से सिलिकॉन वैली और अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले कुशल पेशेवर अमेरिका छोड़ सकते हैं। यह अमेरिका की अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह होगा, क्योंकि ये पेशेवर अरबों डॉलर का योगदान करते हैं। प्रतिभाशाली कामगार अब कनाडा या यूरोप जैसे देशों में जाने की संभावना रखते हैं, जो अमेरिका के लिए दीर्घकालिक नुकसान साबित हो सकता है।

व्यवसाय और IT उद्योग पर प्रभाव

खंडेराव कंड ने कहा कि $100,000 की फीस एक दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है, जिसका सबसे अधिक असर सॉफ्टवेयर और IT सेक्टर पर पड़ेगा। अमेरिकी कंपनियों को प्रतिभाशाली कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ेगा। इस कदम से न केवल व्यवसाय प्रभावित होंगे बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अमेरिका की स्थिति कमजोर होगी। उद्योग और विशेषज्ञ इस फैसले के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और इसे अमेरिका के दीर्घकालिक हित के लिए खतरनाक मान रहे हैं।

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