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Wednesday, July 30, 2025
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Trump Tariff: अमेरिका ने दिखाई टैरिफ तलवार, क्या भारत करेगा अंतिम समझौता या पड़ेगा आर्थिक झटका?

Trump Tariff: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अब तक करीब 20 देशों को टैरिफ बढ़ाने के लिए चिट्ठियां भेजी हैं। इनमें जापान, कोरिया, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश शामिल हैं। अब बारी भारत की है। खबर है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर बातचीत अंतिम चरण में है। अगर समझौता नहीं हुआ तो अमेरिका भारत पर भी 20 प्रतिशत टैरिफ लगा सकता है। यह फैसला ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत लिया जा रहा है ताकि घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाया जा सके।

भारत को पहले भी झेलना पड़ा है टैरिफ

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार भारत शायद इस बार वियतनाम, लाओस और म्यांमार जैसे देशों के साथ भेजी जा रही नई टैरिफ चिट्ठियों से बच जाए। हालांकि ट्रंप प्रशासन पहले ही अप्रैल में भारत पर 26 प्रतिशत का रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करने की घोषणा कर चुका है। यह टैरिफ भारत द्वारा अमेरिका पर लगाए गए 52 प्रतिशत टैक्स के जवाब में है। ट्रंप ने इसे ‘डिस्काउंट टैरिफ’ बताया था। इससे साफ है कि अमेरिका भारत को चेतावनी भरे अंदाज में बातचीत के लिए मनाने की कोशिश कर रहा है।

Trump Tariff: अमेरिका ने दिखाई टैरिफ तलवार, क्या भारत करेगा अंतिम समझौता या पड़ेगा आर्थिक झटका?

अन्य देशों पर टैरिफ और भारत की स्थिति

अमेरिका ने ब्राज़ील और म्यांमार पर पहले ही 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। वहीं वियतनाम और फिलीपींस पर 20 प्रतिशत टैरिफ लागू किया गया है। भारत अभी तक इस लिस्ट से बाहर रहा है लेकिन ज्यादा देर तक नहीं। अमेरिका की नजर अब भारत के साथ किए जा रहे व्यापार पर है। ट्रंप ने एनबीसी न्यूज़ को बताया कि वो अधिकतर देशों पर 15 से 20 प्रतिशत टैरिफ लगाने की सोच रहे हैं जिनके साथ अभी तक कोई समझौता नहीं हुआ है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि “भारत के साथ हम अब तक सबसे नजदीक हैं किसी समझौते के।”

क्या भारत बच पाएगा टैरिफ से?

अगर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता फाइनल हो जाता है तो भारत यूनाइटेड किंगडम जैसे उन देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा जो ट्रंप के टैरिफ युद्ध से बच निकले हैं। लेकिन अगर यह समझौता नहीं हो पाया तो भारत पर भी टैरिफ की मार पड़ेगी जिससे निर्यातकों पर असर पड़ेगा और अमेरिका से व्यापार महंगा हो जाएगा। यह समय भारत के लिए काफी नाजुक है क्योंकि एक तरफ विश्व व्यापार में अनिश्चितता बनी हुई है और दूसरी तरफ घरेलू उत्पादकों की प्रतिस्पर्धा अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रभावित हो सकती है।

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