देश में बढ़ते डिजिटल अपराधों पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। अदालत ने कहा कि डिजिटल गिरफ्तारी के मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है और यह एक गंभीर साइबर अपराध बन चुका है। कोर्ट ने संकेत दिए कि ऐसे मामलों की जांच अब सीबीआई को सौंपी जा सकती है ताकि देशभर में फैले इस नेटवर्क को खत्म किया जा सके।
राज्यों से मांगी पूरी रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है कि अब तक कितने डिजिटल गिरफ्तारी और साइबर फ्रॉड के मामले दर्ज हुए हैं। कितने एफआईआर दर्ज की गईं और किन-किन मामलों में कार्रवाई की गई। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक ठोस आंकड़े सामने नहीं आएंगे तब तक कोई ठोस कदम उठाना मुश्किल होगा। इसलिए राज्यों को आदेश दिया गया है कि वे एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट अदालत में जमा करें।

सीबीआई को मिल सकती है जांच की जिम्मेदारी
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा कि फिलहाल कोई आदेश जारी नहीं किया जा रहा लेकिन हमारी राय में देशभर में हो रहे डिजिटल गिरफ्तारी के मामलों की जांच सीबीआई को ही करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सीबीआई इस तरह के मामलों में राष्ट्रीय स्तर पर जांच कर सकती है और सच्चाई तक पहुंच सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय के साइबर प्राधिकरणों की मदद से इस जांच को प्रभावी बनाया जा सकता है।
हरियाणा सरकार ने दी सहमति
हरियाणा सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि इस गंभीर अपराध की प्रकृति को देखते हुए उन्हें जांच सीबीआई को सौंपे जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। उन्होंने बताया कि अंबाला साइबर क्राइम ब्रांच द्वारा दर्ज दो एफआईआर जल्द ही सीबीआई को सौंप दी जाएंगी। इसके अलावा अन्य संबंधित एफआईआर की जानकारी भी अदालत को दी जाएगी। कोर्ट ने राज्य को एक सप्ताह का समय दिया है ताकि वह सभी मामलों का ब्योरा प्रस्तुत कर सके।
देशभर में चिंता का माहौल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिजिटल गिरफ्तारी की घटनाएं अब हर राज्य से सामने आ रही हैं। कोई भी राज्य इससे अछूता नहीं है। लोग झूठे लिंक, फेक कॉल और वर्चुअल वीडियो कॉल के जरिए डराए जा रहे हैं और पैसे वसूले जा रहे हैं। अदालत ने कहा कि यह स्थिति बेहद चिंताजनक है और यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई तो यह साइबर आतंक के रूप में उभर सकती है।

