Stock Market: भारतीय निवेशकों के लिए नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने एक बड़ा ऐलान किया है। अब इक्विटी डेरिवेटिव यानी F&O सेगमेंट में भी प्री-ओपन सेशन की शुरुआत होने जा रही है। यह नई प्रणाली 8 दिसंबर 2025 से लागू होगी। NSE का कहना है कि इसका उद्देश्य बेहतर प्राइस डिस्कवरी यानी मूल्य निर्धारण और बाजार के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करना है। अब ट्रेडिंग 9:15 बजे सीधे शुरू नहीं होगी बल्कि उससे पहले 9:00 से 9:15 बजे तक प्री-ओपन सेशन चलेगा।
प्री-ओपन सेशन के तीन अहम हिस्से
NSE के अनुसार प्री-ओपन सेशन तीन हिस्सों में बंटा होगा। पहला है ऑर्डर एंट्री पीरियड, जो सुबह 9:00 बजे से 9:08 बजे तक रहेगा। इस दौरान ट्रेडर्स अपने ऑर्डर प्लेस कर सकेंगे, उनमें बदलाव कर सकेंगे या उन्हें रद्द भी कर सकेंगे। यह अवधि 7वें और 8वें मिनट के बीच कभी भी यादृच्छिक रूप से बंद हो सकती है। दूसरा हिस्सा होगा ऑर्डर मैचिंग और ट्रेड कन्फर्मेशन, जो 9:08 से 9:12 बजे तक चलेगा। इसमें सिस्टम इक्विलिब्रियम प्राइस तय करेगा और उसी के आधार पर ऑर्डर मैच किए जाएंगे। तीसरा हिस्सा बफर पीरियड होगा, जो 9:12 से 9:15 बजे तक चलेगा ताकि सामान्य ट्रेडिंग सुचारू रूप से शुरू हो सके।

किन पर लागू होगी यह नई व्यवस्था
NSE ने स्पष्ट किया है कि यह नई व्यवस्था सिंगल स्टॉक्स और इंडेक्स फ्यूचर्स दोनों पर लागू होगी। हालांकि, यह फार-मंथ (M3) कॉन्ट्रैक्ट्स, स्प्रेड्स और ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स पर लागू नहीं होगी। उदाहरण के तौर पर, अगर दिसंबर 2025 एक्सपायरी वाले कॉन्ट्रैक्ट्स (M1) हैं तो 1 दिसंबर से लेकर 30 दिसंबर तक उन पर यह नियम लागू रहेगा। वहीं एक्सपायरी से पांच दिन पहले यह प्रणाली अगले महीने यानी जनवरी 2026 के कॉन्ट्रैक्ट्स पर भी लागू कर दी जाएगी।
कम होगी वोलाटिलिटी और बढ़ेगी लिक्विडिटी
NSE का मानना है कि इस कदम से बाजार की वोलाटिलिटी यानी अस्थिरता में कमी आएगी। साथ ही लिक्विडिटी यानी तरलता में भी सुधार होगा। ट्रेडर्स को अब रियल-टाइम में इंडिकेटिव प्राइस, इक्विलिब्रियम डेटा और डिमांड-सप्लाई की जानकारी मिल सकेगी। इससे शुरुआती घंटों में होने वाली तीव्र उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण रहेगा और निवेशकों के लिए बेहतर निर्णय लेना आसान होगा।
अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब पहुंचेगा भारतीय बाजार
वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि NSE का यह कदम भारतीय डेरिवेटिव बाजार को अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब ले जाएगा। अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में पहले से ही इस तरह की प्रणाली अपनाई जाती है। इससे न केवल भारतीय बाजार में पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि निवेशकों का भरोसा भी मजबूत होगा। माना जा रहा है कि इस बदलाव से भारतीय F&O मार्केट और अधिक संगठित और स्थिर बन जाएगा।

