President vs Supreme Court: 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया था जिसमें उसने यह कहा था कि राज्यपाल या राष्ट्रपति को विधानसभा से पास हुए बिलों पर समयसीमा के भीतर फैसला देना होगा। इस फैसले पर जमकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आई थीं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने खुले तौर पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की थी। इस पूरे मामले ने देश में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव की तस्वीर खींच दी थी।
राष्ट्रपति की एंट्री ने बढ़ाया मामला
अब इस पूरे विवाद में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी दखल दिया है। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को एक विशेष संदर्भ के तहत 14 संवैधानिक सवाल भेजे हैं। इन सवालों का मकसद यह स्पष्ट करना है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को जब कोई विधेयक प्रस्तुत किया जाता है तो उनके पास कौन-कौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं और उन्हें किस सीमा तक न्यायिक समीक्षा के दायरे में लाया जा सकता है।
राज्यपाल के अधिकारों पर गहरे सवाल
राष्ट्रपति ने पहला सवाल यह पूछा है कि जब कोई बिल संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास जाता है तो उनके पास क्या विकल्प होते हैं। दूसरा सवाल यह है कि क्या राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह मानने को बाध्य हैं। तीसरा सवाल यह है कि क्या राज्यपाल अनुच्छेद 200 के तहत विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं और क्या यह विवेकाधिकार न्यायिक समीक्षा के योग्य है।
राष्ट्रपति के विवेक और सुप्रीम कोर्ट की सीमा
सवाल केवल राज्यपाल तक सीमित नहीं हैं। राष्ट्रपति ने यह भी पूछा है कि अनुच्छेद 201 के तहत जब राष्ट्रपति के पास कोई बिल आता है तो क्या वह भी विवेकाधिकार का उपयोग कर सकती हैं और क्या सुप्रीम कोर्ट उस विवेकाधिकार पर समयसीमा तय कर सकता है। साथ ही यह भी पूछा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां अनुच्छेद 142 के तहत क्या केवल प्रक्रिया संबंधी मुद्दों तक सीमित हैं या क्या वह संविधान या कानून से हटकर भी आदेश दे सकता है।
केंद्र और राज्यों के विवादों पर न्यायपालिका की भूमिका
राष्ट्रपति ने अंतिम सवाल में यह जानना चाहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच होने वाले विवादों को सुलझाने का अधिकार केवल अनुच्छेद 131 के तहत ही प्राप्त है या कोई अन्य रास्ता भी है। इन सभी सवालों से यह साफ है कि राष्ट्रपति इस पूरे मामले को संविधान की गहराई से समझने और सभी पक्षों की सीमाएं स्पष्ट करने के इरादे से देख रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का जवाब आने वाले समय में कार्यपालिका और न्यायपालिका के रिश्तों की दिशा तय कर सकता है।