राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख Mohan Bhagwat ने केरल के कोच्चि में ‘ज्ञान सभा’ नामक राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में एक अहम संदेश दिया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि “भारत, भारत ही है” और इसे किसी विदेशी भाषा में अनुवादित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की पहचान उसकी भारतीयता में है। जब हम भारत को इंडिया कहते हैं तो हम उसकी मूल भावना को कमजोर करते हैं। जैसे हम गोकुल के ‘गोपाला’ को ‘काउ हर्ड’ नहीं कहते उसी तरह भारत को भी भारत ही कहना चाहिए। यही उसकी गरिमा है।
शिक्षा में भारतीयता जरूरी क्यों
भागवत ने शिक्षा की बात करते हुए कहा कि आज के aसमय में यह बेहद जरूरी है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में भारतीयता हो। उन्होंने कहा कि हमें ऐसा ज्ञान चाहिए जो हमारी संस्कृति से जुड़ा हो न कि केवल विदेशी सोच की नकल हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि शिक्षा हमें अपनी पहचान से दूर कर दे तो वह शिक्षा अधूरी है। हमें वही पढ़ना चाहिए जो हमें भारत की आत्मा से जोड़ सके।
#WATCH | Kochi, Kerala: RSS Chief Mohan Bhagwat, says, "…Bharat is a proper noun. It should not be translated. 'India that is Bharat' is true. But Bharat is Bharat, and that is why, while writing and speaking, we should keep Bharat as Bharat… Bharat must remain Bharat. The… pic.twitter.com/J2J3upetSG
— ANI (@ANI) July 27, 2025
पहचान खोई तो सम्मान भी खोया
मोहन भागवत ने यह भी कहा कि दुनिया में अगर किसी व्यक्ति या देश को सम्मान चाहिए तो उसे अपनी पहचान बरकरार रखनी होगी। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जंगल में रहने वाला शेर डर और सम्मान दोनों पैदा करता है जबकि सर्कस का शेर केवल मनोरंजन देता है। इसलिए जब तक हम अपनी असल पहचान को नहीं समझेंगे तब तक दुनिया हमें गंभीरता से नहीं लेगी।
विकास का मतलब केवल नकल नहीं
भागवत ने विकास की आधुनिक परिभाषा को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि यदि कोई जानवर साइकिल चलाए या फुटबॉल खेले तो यह विकास नहीं है यह केवल नकल है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि यह दिखावे की चीजें होती हैं जिन पर हम पैसे खर्च कर देखते हैं लेकिन उन्हें सम्मान नहीं देते। इसी तरह अगर भारत अपनी असलियत छोड़कर पश्चिम की नकल करता रहा तो सम्मान नहीं मिलेगा।
पहले जानें भारत क्या है
अपने भाषण के अंत में भागवत ने कहा कि हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि भारत है क्या। केवल भूगोल या इतिहास नहीं बल्कि एक सोच है एक संस्कृति है जो हजारों सालों से चली आ रही है। अगर हम खुद अपनी शिक्षा और पहचान को नहीं समझेंगे तो दुनिया से क्या उम्मीद करेंगे कि वह हमें सम्मान दे। भारत को जानना ही सबसे पहला कदम है आत्मनिर्भर बनने की दिशा में।