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Saturday, August 23, 2025
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Javed Akhtar का स्वतंत्रता दिवस पोस्ट और ट्रोलर्स से भिड़ंत! जावेद अख्तर ने पाकिस्तानी कहने वाले ट्रोलर्स को दिया करारा सबक

हिंदी सिनेमा के दिग्गज गीतकार और लेखक Javed Akhtar अक्सर अपने बेबाक विचारों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं। इस बार भी उन्होंने 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस पर एक खास पोस्ट लिखकर देशप्रेम जाहिर किया। उन्होंने लिखा कि हम सबको यह याद रखना चाहिए कि आज़ादी हमें यूं ही थाली में सजाकर नहीं दी गई। इसके लिए हमारे पूर्वजों ने जेल की यातनाएँ सही और फांसी के फंदे पर चढ़े। इस दिन हमें उन शहीदों को याद कर उन्हें सलाम करना चाहिए और इस आज़ादी की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए।

ट्रोलर्स का हमला

जावेद अख्तर के इस भावुक पोस्ट पर कई लोगों ने उन्हें सराहा लेकिन कुछ लोग उन्हें ट्रोल करने से भी पीछे नहीं हटे। एक यूज़र ने उनकी पोस्ट पर कमेंट करते हुए उन्हें पाकिस्तानी कह डाला। उसने लिखा कि तुम्हारा स्वतंत्रता दिवस तो 14 अगस्त है। यह सीधा-सीधा तंज था और जावेद अख्तर के लिए बेहद आपत्तिजनक भी।

जावेद अख्तर का करारा जवाब

जावेद अख्तर ट्रोल्स को अक्सर मुंहतोड़ जवाब देने के लिए जाने जाते हैं। इस बार भी उन्होंने इस यूज़र को चुप कराने में देर नहीं लगाई। उन्होंने जवाब देते हुए लिखा कि बेटा जब तुम्हारे बाप-दादा अंग्रेजों की चापलूसी कर रहे थे तब मेरे बुजुर्ग देश की आज़ादी के लिए काला पानी की सजा भुगत रहे थे। अपनी औकात में रहो। उनका यह जवाब सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लोगों ने उनकी तारीफ की।

काला पानी का ज़िक्र और पारिवारिक विरासत

जवाब में जावेद अख्तर ने जिस ‘काला पानी’ का जिक्र किया वह अंडमान का वह कुख्यात सेल्युलर जेल है जहां स्वतंत्रता सेनानियों को अमानवीय यातनाएँ दी जाती थीं। दरअसल जावेद अख्तर के परदादा फ़ज़ल-ए-हक़ खैराबादी 1857 की क्रांति के बड़े नेताओं में से एक थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ फतवा जारी किया था। इसके चलते उन्हें काला पानी की सजा मिली और वहीं उनकी मृत्यु हो गई।

शायरी और आज़ादी की धरोहर

जावेद अख्तर का परिवार लंबे समय से साहित्य और आज़ादी की लड़ाई से जुड़ा रहा है। उनके दादा मुझ्तर खैराबादी और पिता जांनिसार अख्तर भी मशहूर शायर थे। उनकी शायरी आज़ादी, इंसाफ और समाजिक बराबरी के संदेश से भरी हुई थी। यही वजह है कि जावेद अख्तर अपने विचारों को खुलकर सामने रखते हैं और ट्रोलर्स से भी बिना डरे जवाब देते हैं। उनका यह रुख बताता है कि आज़ादी की लड़ाई सिर्फ इतिहास नहीं बल्कि उनकी नसों में बसी विरासत है।

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