IndiGo Airline Case: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को इंडिगो एयरलाइन का संचालन करने वाली ‘इंटरग्लोब एविएशन’ की याचिका पर सीमा शुल्क विभाग से जवाब मांगा। याचिका में विदेशों में मरम्मत के बाद भारत में पुनः आयात किए गए विमान के इंजनों और पुर्जों पर 900 करोड़ रुपये से अधिक के सीमा शुल्क रिफंड की मांग की गई है। इंटरग्लोब ने दलील दी है कि इस तरह के पुनर्आयात पर सीमा शुल्क लगाना असंवैधानिक है और यह एक ही लेनदेन पर दोहरा शुल्क लगाने के समान है। कंपनी का कहना है कि उन्होंने मरम्मत के समय बिना किसी विवाद के मूल सीमा शुल्क का भुगतान किया था और साथ ही इस पर माल एवं सेवा कर (जीएसटी) का भुगतान ‘रिवर्स चार्ज’ तंत्र के तहत भी किया गया।
न्यायालय ने अधिकारियों को दिया जवाबी हलफनामे का निर्देश
न्यायमूर्ति वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति विनोद कुमार की पीठ ने उपायुक्त (रिफंड), प्रधान सीमा शुल्क आयुक्त कार्यालय, एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स (आयात) को नोटिस जारी किया और आदेश दिया कि वे दो सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करें। अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 8 अप्रैल, 2026 को तय की है। सीमा शुल्क विभाग के वकील ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह समय से पहले दायर की गई है और जिस आधार पर यह दावा किया गया है, वह मुद्दा उच्चतम न्यायालय में लंबित है। उन्होंने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में कोई स्थगन आदेश पारित नहीं किया है और अदालत से अपने जवाब दाखिल करने के लिए समय की मांग की।
इंटरग्लोब एविएशन की दलील
इंटरग्लोब के वकील ने यह स्पष्ट किया कि मरम्मत के बाद विमान के इंजनों और पुर्जों के पुनः आयात के समय कंपनी ने बिना किसी विवाद के मूल सीमा शुल्क का भुगतान किया था। साथ ही, मरम्मत सेवा के दायरे में आने के कारण इस पर रिवर्स चार्ज के आधार पर जीएसटी भी चुकाया गया। ‘रिवर्स चार्ज’ एक ऐसा तंत्र है जिसमें सेवा का प्राप्तकर्ता या खरीदार सीधे सरकार को कर भुगतान करता है, जबकि सामान्य जीएसटी प्रणाली में विक्रेता ग्राहक से कर वसूलकर सरकार को जमा करता है। इंटरग्लोब ने दावा किया कि सीमा शुल्क अधिकारियों ने उसी लेनदेन को माल के आयात के रूप में मानकर दोबारा शुल्क लगाने का प्रयास किया, जो कि अनुचित और पहले से तय निर्णयों के खिलाफ है।
सीमा शुल्क न्यायाधिकरण का निर्णय
इंटरग्लोब ने अपने वकील के माध्यम से यह भी बताया कि यह मुद्दा पहले ही सीमा शुल्क न्यायाधिकरण (Customs Tribunal) में प्रस्तुत किया जा चुका है। उस फैसले में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि मरम्मत के बाद पुनः आयात पर सीमा शुल्क दोबारा नहीं लगाया जा सकता। यानि कि पहले से ही न्यायिक निर्णय इस पक्ष में है कि मरम्मत के बाद आयात किए गए उपकरणों और पुर्जों पर दोहरा कर नहीं लगाया जा सकता। इस आधार पर इंटरग्लोब ने उच्च न्यायालय से आग्रह किया है कि 900 करोड़ रुपये से अधिक की राशि का रिफंड जारी किया जाए। अब यह मामला अदालत में सुनवाई के लिए लंबित है और आगामी हफ्तों में अदालत का फैसला कंपनी और सरकार दोनों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।

