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Saturday, November 15, 2025
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सांसदों की मांग पर स्थायी समितियों की अवधि बढ़ाने की तैयारी, दो साल तक कार्य की संभावनाएं

संसदीय स्थायी समितियों की अवधि बढ़ाने की तैयारी शुरू हो गई है। लंबे समय से सांसदों की ओर से यह मांग उठ रही थी कि समिति की अवधि बढ़ाई जाए ताकि उनके काम में निरंतरता बनी रहे और गुणवत्ता में सुधार हो। वर्तमान में समितियों की अवधि एक वर्ष की होती है, जो कई सांसदों के अनुसार विषयों की गहनता और बिलों, बजट और अन्य महत्वपूर्ण मामलों की समीक्षा के लिए पर्याप्त नहीं है।

समिति की वर्तमान व्यवस्था और चुनौतियां

अभी स्थायी समितियां सालाना आधार पर गठित होती हैं और उनकी अवधि 26 सितंबर को समाप्त हो जाती है। हर साल नए सदस्यों को शामिल करने से समिति की निरंतरता प्रभावित होती है और काम में बाधा आती है। सांसदों ने सरकार से अनुरोध किया है कि समिति की अवधि बढ़ाकर दो वर्ष की जाए ताकि स्थायी काम में सुधार और योजना के अनुसार कार्य पूरा किया जा सके।

सांसदों की मांग पर स्थायी समितियों की अवधि बढ़ाने की तैयारी, दो साल तक कार्य की संभावनाएं

अवधि विस्तार से होने वाले लाभ

यदि स्थायी समितियों की अवधि दो वर्ष कर दी जाती है तो इसके कई फायदे होंगे। सदस्यों के पास बिलों, बजट और विभिन्न रिपोर्टों को गहनता से समझने और परखने का पर्याप्त समय होगा। दो वर्ष की अवधि से समिति में स्थिरता आएगी और लंबे समय से चल रहे परियोजनाओं को पूरा करना आसान होगा। इसके साथ ही सदस्यों को विभागों और विषयों को समझने का अधिक अवसर मिलेगा।

समिति की संरचना पर संभावित प्रभाव

सूत्रों के अनुसार, अवधि बढ़ने के बावजूद अधिकांश समितियों की अध्यक्षता में बदलाव नहीं किया जा सकता है। हालांकि, कुछ समितियों में सदस्यता में बदलाव किया जा सकता है, जो राजनीतिक दलों की मांग और नीतियों के आधार पर होगा। समिति के सदस्य संबंधित राजनीतिक पार्टियों द्वारा नामित किए जाते हैं। इस प्रस्ताव में राजनीतिक पहलू भी है, जैसे विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर हैं, जिनका अपने ही पार्टी कांग्रेस के साथ कई बार मतभेद रहा है।

संसद में सुधार और कामकाज में मजबूती

समिति की अवधि बढ़ाने से संसद में स्थायी समितियों की भूमिका और महत्व बढ़ेगा। सदस्यों को विषयों को समझने, लंबी अवधि की परियोजनाओं को पूरा करने और गहन समीक्षा करने का समय मिलेगा। यह कदम न केवल विधायी प्रक्रिया को मजबूत करेगा बल्कि राजनीतिक निर्णय लेने में भी पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करेगा। इससे संसदीय कामकाज में सुधार और स्थायित्व आएगा।

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