Bihar Assembly Elections से पहले चुनाव आयोग ने 24 जून को ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ यानी SIR अभियान शुरू करने का फैसला किया है। यह प्रक्रिया 25 जून से 26 जुलाई 2025 तक चलेगी। इसके तहत मतदाता सूची में मौजूद फर्जी और गलत नामों को हटाने के लिए दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं। आयोग का कहना है कि इसका उद्देश्य केवल पारदर्शिता और शुद्धता सुनिश्चित करना है ताकि लोकतंत्र को मजबूती मिले।
विपक्ष का आरोप: यह है ‘बैकडोर NRC’ और ‘वोट बैन’
इस फैसले ने बिहार की सियासत में तूफान ला दिया है। विपक्ष का आरोप है कि यह मतदाताओं को वंचित करने की एक साजिश है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस प्रक्रिया को ‘बैकडोर NRC’ और ‘वोट बैन’ करार दिया है। उनका दावा है कि इतने कम समय में दस्तावेज जुटा पाना गरीब और ग्रामीण मतदाताओं के लिए मुश्किल होगा और लाखों लोग मतदान से वंचित हो सकते हैं।
जयराम रमेश बोले- आयोग का रवैया तानाशाही जैसा
जयराम रमेश ने एक्स (X) पर बताया कि इंडिया गठबंधन के प्रतिनिधिमंडल ने आयोग से मुलाकात की लेकिन पहले उन्हें मिलने से इनकार कर दिया गया था। बाद में दबाव पड़ने पर मुलाकात की अनुमति दी गई। उन्होंने कहा कि आयोग ने केवल दो प्रतिनिधियों को मिलने की अनुमति दी जिससे कई नेता बाहर ही रह गए। रमेश ने आयोग पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया और पूछा कि क्या ये नया आयोग लोकतंत्र को कमजोर करने की दिशा में एक और कदम उठा रहा है?
कल शाम INDIA ब्लॉक के प्रतिनिधिमंडल ने बिहार की विशेष मतदाता गहन पुनरीक्षण (“SIR”) को लेकर चुनाव आयोग से मुलाकात की। पहले आयोग ने मिलने से इनकार कर दिया था, लेकिन अंततः दबाव में आकर प्रतिनिधिमंडल को बुलाया गया। आयोग ने मनमाने ढंग से प्रत्येक पार्टी से केवल दो प्रतिनिधियों को ही…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) July 3, 2025
आयोग का दावा: केवल पारदर्शिता लाना मकसद
वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य सिर्फ मतदाता सूची को शुद्ध करना है। इसमें नागरिकता के प्रमाण, पहचान पत्र और पते के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कोई NRC नहीं है बल्कि सिर्फ उन नामों को हटाने की कोशिश है जो गलत तरीके से दर्ज हो गए हैं या अब जीवित नहीं हैं।
राजनीति गरमाई, लोकतंत्र की परीक्षा शुरू
SIR अभियान ने बिहार में राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। जहां एक ओर सत्ता पक्ष इसे सुधारात्मक कदम बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र के लिए खतरा मान रहा है। आम लोगों में भी भ्रम की स्थिति है कि क्या उन्हें वोट देने से रोका जा सकता है? अब देखना यह है कि आयोग पारदर्शिता और निष्पक्षता को कैसे बनाए रखता है और क्या यह अभियान बिना किसी भेदभाव के पूरा हो पाएगा।