Bhubaneswar: उड़ीसा हाई कोर्ट ने मंगलवार को दो व्यक्तियों को नोटिस जारी कर उन्हें अपनी बात रखने के लिए 24 फरवरी को पेश होने का आदेश दिया। दोनों व्यक्तियों ने दावा किया है कि उन्हें 2023 में पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त हुआ था। दोनों का नाम “श्री अंतर्मयी मिश्रा” है, और यह मामला इसलिए भी जटिल हो गया है क्योंकि दोनों ने एक ही पुरस्कार के लिए दावा किया है, जिसके कारण अदालत ने इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई का निर्णय लिया है।
क्या है पूरा मामला?
श्री अंतर्मयी मिश्रा, जो कि उड़ीसा के निवासी हैं, 2023 में पद्म श्री पुरस्कार के लिए 56वें स्थान पर रहे थे। यह पुरस्कार उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए दिया गया था। मिश्रा ने दिल्ली जाकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से यह प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त किया था। हालांकि, बाद में एक अन्य व्यक्ति, डॉक्टर अंतर्मयी मिश्रा, जो पेशे से एक चिकित्सक हैं, ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की और दावा किया कि उनके नाम पर यह पुरस्कार दिया गया है। चिकित्सक ने दावा किया कि उनका नाम भी 2023 के पद्म श्री पुरस्कार विजेताओं की सूची में था, और उन्हें यह सम्मान उनकी 29 पुस्तकें लिखने के कारण मिला था, जो उन्होंने ओडिया और अन्य भारतीय भाषाओं में लिखी थीं।
अदालत में उठाए गए सवाल
याचिका में डॉक्टर अंतर्मयी मिश्रा ने कहा कि उनके नाम के समान नाम वाले पत्रकार को यह पुरस्कार दे दिया गया, जबकि उन्होंने साहित्य और लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया था। उन्होंने यह भी कहा कि उनके द्वारा लिखी गई किताबों का कोई उल्लेख पत्रकार की सूची में नहीं है। इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एसके पाणिग्रही ने कहा कि सरकार द्वारा किए गए सख्त सत्यापन प्रक्रिया के बावजूद, समान नामों के कारण भ्रम उत्पन्न हुआ है, जिससे चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है। अदालत ने दोनों दावेदारों को निर्देश दिया कि वे अपनी उपस्थिति में सभी प्रकाशनों और सामग्रियों को पेश करें, ताकि उनके दावों को सही ठहराया जा सके।
क्या कहते हैं सरकारी अधिकारियों और पद्म श्री चयन प्रक्रिया पर?
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, पद्म श्री जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के चयन के लिए एक कड़ी और व्यवस्थित प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया में राज्य सरकारों, केंद्रीय मंत्रालयों, और विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा प्राप्त नामों की जांच की जाती है। इसके बाद, इस सूची को केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है, जहां एक विशेष समिति द्वारा चयन की अंतिम प्रक्रिया की जाती है। लेकिन, इस मामले में दो अलग-अलग व्यक्तियों के समान नाम होने के कारण भ्रम उत्पन्न हुआ, और इसने चयन प्रक्रिया पर संदेह को जन्म दिया है।
दोनों दावेदारों को कोर्ट ने बुलाया
उड़ीसा हाई कोर्ट ने दोनों दावेदारों को आदेश दिया कि वे 24 फरवरी को अदालत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं और अपने-अपने दावों को समर्थन देने के लिए सभी जरूरी दस्तावेज और सामग्री प्रस्तुत करें। इसके अलावा, अदालत ने इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी नोटिस जारी किया है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि इस मामले में चयन प्रक्रिया में किस तरह की त्रुटि हुई और इसके समाधान के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
क्या कहती हैं कानूनी विशेषज्ञ?
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में कानूनी जटिलताएं बढ़ सकती हैं, क्योंकि यह केवल एक पुरस्कार का मामला नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी चयन प्रक्रिया और सरकारी कार्यप्रणाली की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि अदालत में यह साबित होता है कि पुरस्कार का वितरण किसी प्रकार की गलती से हुआ है, तो इसका असर पद्म पुरस्कार की चयन प्रक्रिया पर पड़ सकता है। इसके अलावा, इस मुद्दे में एक और बड़ा पहलू यह है कि एक ही नाम के दो व्यक्तियों के बीच भ्रम होने के कारण, व्यक्तिगत सम्मान और प्रतिष्ठा की भी चिंता उत्पन्न हो सकती है।
न्यायालय का निर्णय क्या हो सकता है?
हाई कोर्ट ने दोनों दावेदारों से सभी संबंधित दस्तावेज और प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के लिए कहा है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि वास्तव में किसे पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त हुआ है। यह सुनवाई 24 फरवरी को होने वाली है, और अदालत का निर्णय इस बात पर निर्भर करेगा कि दावेदारों द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमाणों और उनके दावों की सच्चाई क्या है।
इस मामले में सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों को अपने दावों को साबित करने के लिए पर्याप्त समय दिया गया है। अब देखना यह होगा कि अदालत इस मामले में कौन सा फैसला करती है और क्या यह विवाद भविष्य में पद्म पुरस्कार चयन प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को उजागर करता है। साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण होगा कि इस मामले के बाद ऐसी गलतियों को कैसे सुधारा जाए, ताकि भविष्य में समान नामों के कारण इस तरह की स्थिति उत्पन्न न हो।
यह मामला भारतीय पुरस्कार वितरण प्रणाली की जटिलताओं और इसके लिए लागू की गई कड़ी प्रक्रिया को एक नई रोशनी में लाता है। कोर्ट में चल रही सुनवाई और दोनों दावेदारों के दावे के आधार पर इस मामले का निष्कर्ष निकाला जाएगा। इस प्रकार के मामलों में अदालत की भूमिका और निर्णय महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि इससे ना केवल पुरस्कारों की विश्वसनीयता पर असर पड़ेगा, बल्कि चयन प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता भी सामने आ सकती है।