पिछले कुछ महीनों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI के ज़रिए बनाए गए डीपफेक वीडियो और फर्जी कंटेंट ने दुनिया भर में हलचल मचा दी है। अब सरकारें इस पर रोक लगाने की तैयारी में हैं। भारत ने जहां डीपफेक पर नियंत्रण के संकेत दिए हैं वहीं चीन ने तो इस पर कड़ा कानून भी लागू कर दिया है। चीन में अब कोई भी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर अगर एआई से बना वीडियो या कंटेंट शेयर करेगा तो उसे यह साफ बताना होगा कि वह एआई जनरेटेड है।
चीन का नया सख्त नियम
चीन की साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (CAC) ने नए नियम लागू किए हैं जिनके तहत किसी भी कंटेंट क्रिएटर को यह स्पष्ट लिखना होगा कि उसका कंटेंट एआई से तैयार किया गया है या नहीं। इतना ही नहीं, सर्विस प्रोवाइडर्स को भी इन सभी एआई कंटेंट्स का रिकॉर्ड कम से कम छह महीने तक रखना होगा। अगर कोई व्यक्ति एआई लेबल हटाता है या उसमें छेड़छाड़ करता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यह सब चीन के “Qinglang” यानी “क्लीन एंड ब्राइट” अभियान का हिस्सा है जिसका उद्देश्य है इंटरनेट पर फैल रही अफवाहों और गलत सूचनाओं को रोकना।

एआई से जुड़ी वैश्विक चुनौती
एआई तकनीक के बढ़ते प्रयोग से अब असली और नकली कंटेंट में फर्क करना बेहद मुश्किल हो गया है। डीपफेक वीडियो इतने वास्तविक लगते हैं कि आम लोग उन्हें असली मान बैठते हैं। इस वजह से न केवल किसी की छवि खराब हो सकती है बल्कि फेक न्यूज भी तेजी से फैलती है। इसी वजह से अब दुनिया भर में एआई पर सख्त नियमों की मांग बढ़ रही है। यूरोपीय यूनियन ने भी एआई एक्ट बनाकर यह सुनिश्चित किया है कि हर एआई कंटेंट पर लेबलिंग अनिवार्य हो।
भारत भी तैयारी में
भारत में भी सरकार इस दिशा में गंभीर है। देश में पहले से ही नेशनल स्ट्रेटेजी फॉर एआई (2018), प्रिंसिपल्स फॉर रिस्पॉन्सिबल एआई (2021) और ऑपरेशनलाइजिंग प्रिंसिपल्स फॉर रिस्पॉन्सिबल एआई जैसी रूपरेखाएं तैयार की जा चुकी हैं। हालांकि ये कानून चीन की तरह सख्त नहीं हैं लेकिन यह शुरुआत ज़रूर हैं। इन नीतियों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि एआई तकनीक का इस्तेमाल जिम्मेदारी से और समाज के हित में हो।
भविष्य के लिए बड़ी चुनौती
एआई तकनीक जितनी तेजी से बढ़ रही है, उतना ही इसका गलत इस्तेमाल भी बढ़ता जा रहा है। आने वाले समय में सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि तकनीक का उपयोग विकास के लिए हो न कि भ्रम फैलाने के लिए। चीन का यह कदम निश्चित रूप से एक मिसाल है जिसे बाकी देश भी अपनाने पर विचार कर सकते हैं। जिम्मेदार एआई ही भविष्य को सुरक्षित बना सकती है।

