back to top
Friday, November 21, 2025
Homeमनोरंजन120 Bahadur Review: रेज़ांग ला की शौर्य गाथा पर बनी 120 बहादुर,...

120 Bahadur Review: रेज़ांग ला की शौर्य गाथा पर बनी 120 बहादुर, शानदार विजुअल्स के बावजूद क्यों नहीं छू पाई दिल

120 Bahadur Review: भारत जैसे देश में युद्ध पर आधारित फिल्में सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं होतीं, बल्कि वे भावना, गर्व, बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक भी बन जाती हैं। 1962 के रेजांग ला युद्ध जैसे ऐतिहासिक संघर्ष पर बनी फिल्म ‘120 बहादुर’ ऐसी ही एक कहानी है, जो उस बहादुरी को दर्शाती है जिसे दुनिया में बहुत कम लोग दोहरा पाएंगे। 120 भारतीय सैनिकों ने असंभव परिस्थितियों में लड़ाई लड़ी और अद्भुत साहस का परिचय दिया। इस बहादुर कहानी को पर्दे पर उतारना अपने आप में एक चुनौती है। फरहान अख्तर की यह फिल्म इस महान शौर्य गाथा को जीवंत करने की कोशिश करती है, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव में वह पूरी तरह सफल नहीं हो पाती।

 धीमी शुरुआत और भावनाओं की खोज

फिल्म की शुरुआत रेडियो ऑपरेटर स्पर्श वालिया की यादों से होती है, जिनके नजरिए से हम रेजांग ला की कठिन और दर्दनाक लड़ाई में झांकते हैं। पहले हिस्से में निर्देशक रजनीश ‘राजी’ घाई ने सैनिकों के पारिवारिक जीवन और उनके भावनात्मक संसार को दर्शाने की कोशिश की है। अमिताभ बच्चन की आवाज़ कहानी की पृष्ठभूमि को मजबूती देती है। यह एक अच्छी कोशिश है क्योंकि युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि सैनिकों के रिश्तों और भावनाओं से भी जीता जाता है। लेकिन पटकथा कमजोर पड़ती है और जो दृश्य गहरे प्रभाव छोड़ सकते थे, वे सतही लगते हैं। शैतान सिंह भाटी (फरहान अख्तर) और उनकी पत्नी (राशी खन्ना) पर बनी एक गीतात्मक сцена कहानी के प्रवाह को बाधित करती है और भावनाओं को गहराई नहीं देती। सपोर्टिंग कलाकारों का अभिनय बेहतर है, पर उनकी पृष्ठभूमि पर बहुत कम प्रकाश डाला गया है।

 फिल्म की सबसे बड़ी ताकत

फिल्म की सबसे बड़ी खूबी इसकी सिनेमैटोग्राफी है। तेत्सुओ नागाटा ने लद्दाख की ठंडी और वीरान पहाड़ियों को इतनी खूबसूरती से कैप्चर किया है कि दर्शक खुद को वहीं महसूस करने लगता है। तेज़ युद्ध के दृश्य हों या जज़्बातों से भरे क्लोज़-अप, हर फ्रेम दिल को छू जाता है। असली लोकेशन्स पर फिल्माने का फैसला निर्देशक का बेहतरीन निर्णय साबित होता है क्योंकि युद्ध की सच्चाई चेहरे की भावनाओं के साथ-साथ उस जमीन से भी आती है जहाँ लड़ाई लड़ी गई थी। लद्दाख की प्राकृतिक सुंदरता फिल्म में जान डाल देती है और दर्शकों को बांधे रखती है।

 युद्ध का असली रंग और भावनात्मक गहराई

जैसे ही कहानी युद्धभूमि की ओर बढ़ती है, फिल्म अपनी असली गति और जोश पकड़ती है। भारतीय और चीनी सेनाओं के आमने-सामने मुकाबले ने फिल्म को वह धार दी जो पहले हिस्से में कमी रह गई थी। लड़ाई के दृश्य कड़े, भावनात्मक और इतने प्रबल हैं कि दर्शक उनकी तीव्रता महसूस कर सकते हैं। सैनिकों की हिम्मत, बलिदान और अंतिम सांस तक लड़ने की दृढ़ता दिल को छू जाती है। एक खास पल जब चीनी सैनिक भी शैतान सिंह का सम्मान करते हैं, फिल्म का खोया हुआ भावनात्मक संतुलन वापस लाता है। इस हिस्से का गीत ‘याद आते हैं’ कहानी से जुड़ाव बढ़ाता है और गहरे असर छोड़ता है। फिल्म के कई दृश्य उस युग की याद दिलाते हैं।

 मजबूती पर कुछ असंतुलन

फरहान अख्तर ने शैतान सिंह भाटी की भूमिका निभाई है, लेकिन उनका अभिनय पूरे फिल्म के भावनात्मक प्रभाव के लिए कुछ हद तक कमजोर पड़ता है। जबकि सहायक कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं में दमदार प्रस्तुति दी है और वे फरहान की उपस्थिति को भी काफ़ी हद तक छा जाते हैं। उनका वास्तविक और जज़्बाती अभिनय फिल्म में युद्ध की थकावट और जुनून को अच्छी तरह से दर्शाता है। कुल मिलाकर, ‘120 बहादुर’ वह फिल्म है जो अपने दृश्यों और कहानी की गहराई से प्रेरणा देती है, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव में थोड़ी कमी महसूस होती है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments